|| संकल्प करना ||
संकल्प विधि :- दाहिने हाथ में जल लेकर बोले:-
ओउमतत्सदध्ये तस्य ब्राह्मो ह्नी द्वितीय परर्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त अंतर्गत देशे वैवस्त मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरने श्री विक्रमार्क राज्यदमुक संवत्सर.........अमुक शके......, ईश्वी सत्र ......,अमुक अयन उतरायण/ दक्षिण.....अमुक ऋतु.............
मासे ..... पक्षे ..... तिथि ......वार..... दिनांक........... अपना नाम.......
अपनी गोत्र ........मम कायिक वाचिक मानसिक सांसर्गिक दुविधा निवारण श्रीराधासर्वेश्वर मंत्र सन्ध्योपासनं करिष्ये | ऐसा कहकर जल छोड दे |
1. ओउम केशवाय नमः |
2. ओउम नारायणाय नमः |
3. ओउम माधवायनमः |
अब पांच बार प्राणायाम करे :- बाये श्वर से श्वास लें व दाहिने श्वर से निकले व वापस दाहिने श्वर से श्वास ले अंदर रोके बाये से निकले इसको पांच बार करे | यह अनुलोम विलोम प्राणायाम अवश्य करें |
अघमर्षण:- दाहिने हाथ में जल लेकर बायें से ढककर उसको तीन बार मूल मन्त्र बोलकर ‘अस्त्राय फट्’बोले और जल को अपने बाएँ भाग में छोडदे
मार्जन :- बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अंगुलियों निम्न मंत्र बोलकर शरीर के अंगों पर छींटे देवें –
ओमं दामोदराय नम: शिरसि | ओउमं संकर्षणाय नम : मुखे |
ओउमं वासुदेवाय नम:, ओउमं प्रद्युम्नाय नम: घ्रणयो: |
ओउमं अनिरुद्धाय नम:, ओउमं पुरुषोत्तमाय नम: नेत्रोयो: |
ओउमं अधोक्षजाय नम:, ओउमं नृसिंहाय नम: श्रोत्रयो: |
ओउमं अच्युताय नम: , ओउमं जनार्दनाय नम: हृदये |
ओउमं हरये नम: , ओउमं विष्णवे नम: हस्तयो: |
ओउमं उपेन्द्राय नम: सर्वांगे इति |
भूत शुद्धि :- दाहिने हाथ में जल या आचमनी में जल लेकर मंत्र बोलें –
ओउमं अध्य श्री मत्सर्वेश्वर कृष्ण आराधन
योग्यता सिध्यर्थं भूत शुद्धिमह करिष्ये |
अब निम्न श्रीगोपाल गायत्री द्वारा करन्यास, अंग न्यास करें |
|| करन्यास ||
ओउमं गोपालाय – अंगुष्ठाभ्यां नम: |
विद्महे – तर्जनीभ्यां नम: |
गोपी वल्लभाय – मध्यमाभ्यां नम: |
धीमहि – अनामिकाभ्यां नम: |
तन्नो: कृष्ण:- कनिष्ठिकाभ्यां नम: |
प्रचोदयात – करतल करपृष्ठाभ्यां नम: |
||हृदयादिन्यास||
ओउमं गोपालाय – हृदयाय नम: |
विद्महे – शिरसे स्वाहा |
गोपी वल्लभाय – शिखायै वषट |
धीमहि – कवचायहुम |
तन्नो: कृष्ण: - नेत्रत्रयाय वौषट |
प्रोचोदयात –अस्त्राय फट |
गायत्री आवाहन – अपने दोनों हाथ जोड़कर बोलें -
आगच्छ वरदे देवि , त्रिपदे कृष्ण वादिनी |
गायत्री छन्दसां मात: कृष्ण योनि नमो अस्तु ते ||
श्री गोपाल गायत्री
ओउमं गोपालाय विद्महे गोपी वल्लभाय धीमहि |
तन्नो: कृष्ण: प्रचोदयात ||
(श्री सर्वेश्वरो विजयते)
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