Wednesday, 18 July 2012

Nimbarkacharya Peethadhishvar Shri Shrii Maharj

           अनंतविभूषित जगद्गुरु श्रीनिम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर

            श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य श्री “श्रीजी” महाराज

Shri Shriji Mahraj
                                                 
अनंत श्री विभूषितजगद्गुरू श्री निम्बार्काचार्यपीठाधीश्वर श्री राधा सर्वेश्वर शरण देवाचार्य श्री श्री जी महाराज का जन्म विक्रम संवत १९८६ वैशाख शुक्ल १ शुक्रवार तदनुसार दिनांक १० मई १९२९ को निम्बार्क तीर्थ (सलेमाबाद) में हुआ | आपकी माताश्री का नाम स्वर्णलता (सोनीबाई) एवं पिताश्री का नाम श्री रामनाथजी शर्मा गौड़ इन्दोरिया था |
आप जैसे नक्षत्रधारी महापुरुष के जन्म से यह विप्र वंश धन्य हुआ है | आप श्री ११ वर्ष की अवस्था में विक्रम संवत १९९७ आषाढ शुक्ल २ रविवार (रथ यात्रा) के शुभ अवसर पर अनंतश्री विभूषित जगद्गुरु श्री बालकृष्ण शरण देवाचार्य जी श्री श्रीजी महाराज से वैष्णवी दीक्षा से दीक्षित होकर पीठ के उत्तराधिकारी नियुक्त हुए |


विक्रम संवत २००० में पूज्य गुरुदेव के गोलोकवास होने पर चौदह वर्ष की अवस्था में जयेष्ठ शुक्ल २ शनिवार दिनांक ५ जून १९४३ को आचार्यपीठ पर आसीन हुए | तदन्तर चार वर्ष तक श्री धाम वृन्दावन में न्याय, व्याकरण, वेदान्त आदि शास्त्रों का अध्ययन किया | व्रज विदेही चतु:सम्प्रदाय श्री महंत श्री धनञ्जयदासजी काठिया बाबा महाराज तर्क-तर्कतीर्थ जैसे महानुभावों का आपको संरक्षण प्राप्त हुआ | आपश्री के आचार्यत्व काल में वैष्णव चतु:सम्प्रदायों के आचार्यों, श्री महंतों, संत महात्माओं, समस्त शंकराचार्यों, श्री करपात्रीजी महाराज, महामंडलेश्वरों, देश के मूर्धन्य मनीषियों, राजा महाराजाओं, राजनेताओं के साथ निकटतम घनिष्ठ संपर्क बढ़ा |
श्री निम्बार्क सम्प्रदाय का चतुर्दिक विस्तार हुआ | विक्रम संवत २००१ में आप श्री ने १५ वर्ष की अवस्था मे कुरुक्षेत्र के विराट साधू सम्मलेन में जगद्गुरु पुरी पीठाधीश्वर श्री भारतीकृष्णतीर्थजी महाराज के तत्वाधान में अध्यक्ष पद को अलंकृत किया |  


आप श्री के कार्यकाल में तीन धाम सप्तपुरी की यात्रा सम्पन्न हुई | प्रयाग,  हरिद्वार (वृन्दावन), उज्जैन, नासिक, इन चारों स्थानों के कुम्भ पर्वों पर अनेकश: श्री निम्बार्कनगर में समायोजित धार्मिक अनुष्ठानों, धर्माचार्यो के सदुपदेशो, विविध सम्मेलनों द्वारा समग्र जन समुदाय को सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया जाता है |

इसी प्रकार सं.२०२६ में व्रज यात्रा, २०३१ में विराट सनातन धर्म सम्मेलन, २०४७ में श्री मुरारी बापू की राम कथा, २०५० में स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर अखिल भारतीय विराट सनातन धर्म सम्मेलन, २०६१ में श्री भगवन निम्बार्काचार्य ५१००वां जयंती महोत्सव पर विराट सनातन धर्म सम्मेलन, २०६२ में युगसंत श्री मुरारी बापू द्वारा  श्रीरामकथा, २०६३ में श्री रमेशभाई ओझा द्वारा श्रीमदभागवत कथा आदि आयोजनों द्वारा जो धार्मिक चेतना जन जन में स्फुरित कराई गयी वह सदा स्मरणीय है | प्रत्येक अधिकमास में आचार्यपीठ पर आयोजित होने वाले अष्टोत्तरशत भागवत, यज्ञ अनुष्ठान, प्रवचन, श्रीरासलीला अनुकरण आदि कार्यक्रम भी सदा प्रेरणा प्रद रहते है, आप द्वारा प्रतिदिन किया जाने वाला श्रीयुगलनाम संकीर्तन भी अनुकरणीय तथा श्रवणीय होता है | सन्१९६६ में दिल्ली के विराट गोरक्षा सम्मेलन में आपश्री का सपरिकर पदार्पण हुआ था | इस अवसर पर स्वामी श्रीकरपात्र जी महाराज एवं अन्य धर्माचार्यों से जो महनीय विचार विमर्श हुआ वह परम ऐतिहासिक है |

आपश्री ने अपने आचार्यत्व काल में जितना देश देशान्तरों में वर्चस्व बढ़ाया है उतना ही देवालयो के निर्माण  जीर्णोद्धार शैक्षिणिक संस्थाओ का निर्माण, सन्चालन, साहित्य प्रकाशन नूतन ग्रन्थ रचना, गोशाला, मुद्रणालय आदि संस्थाओ द्वारा आचार्यपीठ का सर्वतोभावेन विकास किया है | आपश्री द्वारा रचित भारत कल्पतरु ग्रन्थ का विमोचन भारत के उपराष्ट्रपति श्री शंकरदयालजी शर्मा ने दिल्ली में किया | इसी प्रकार आपके अन्य ग्रंथो का मूर्धन्य राजनेताओ शीर्षस्थ महापुरुषों, जगद्गुरुओं द्वारा विमोचन समारोह समपन्न हुये है | आप द्वारा सभी देवी देवताओ की स्तुति युक्त ग्रन्थ भी रचित है | आपश्री का संरक्षण पाकर और आपश्री के महान व्यक्तित्व व् कृतित्व से श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय एवम सनातन धर्म जगत विशेषत: उपकृत हुआ है |आपके मधुर दर्शन की एक झलक पाने और आपश्री के वचनामृत सुनने के लिए धार्मिक जन सदा उत्सुक रहते है |

(Shri Sarveshwaro Vijayate)




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