Wednesday, 15 August 2012

Nimbark Vaishnava Worship Methodology

|| निम्बार्क वैष्णव संध्या पद्धति ||


प्रिय भावुक भक्तजनु वेष्णव के ये मुख्य तीन कर्म है | प्राणीमात्र पर दया, भगवत्भक्ति और वैष्णव सेवा |
जैसे :-

वैष्णवानां त्रयं कर्म दया जीवेशु नारद |
श्रीगोविन्दे परा भक्ति:तदीयाना  समर्चनम्||

इसमे भगवत्सेवा के योग्य मानव तभी बनता है जब प्रात :ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच--स्नान से निवृत्त हो संध्या वन्दना आवश्यक नित्य कर्म कर ले | शास्त्रों में बताया है  “देवो भूत्वा देवं यजेत” अर्थात देव के समान बनकर  देवपूजा करनी चाहिये | ये तभी संभव होगा जब संध्या उपासना कर लेंगे |

बिना संध्या किये जप, तप, पूजा, पाठ, स्तुति, शुभ कर्म उसी प्रकार व्यर्थ है, जैसे पत्थर पर बीज बोने पर होता है | इसलिये संध्या करने के लिए आसन शुद्धि, शरीर शुद्धि, शिखा बंधन, तिलक, संकल्प, आचमन, अघमर्षण, मार्जन, भूतशुद्धि, करन्यास, हृदयादिन्यास, गायत्री आवाहन, श्रीगोपाल गायत्री जप आदि करके फिर गुरु प्रदत्त मंत्र द्वारा करन्यास, अंगन्यास, विनियोग करके मुकुंद मंत्र जप यथा शक्ति करे | इस प्रकार एक माला भी नित्य अनंत फल देती है |सभी के मंत्र निम्न प्रकार है


प्रात : काल स्नान कर, शुद्ध वस्त्र पहनकर, संध्या करने के लिये शुद्ध भूमि पर आसन बिछाकर  “ओउम् आधार शक्ति कमलासनाया नम:” इस मन्त्र को पढकर आसन पर बैठ जावे |

जल के पात्र में से आचमनी से बाये हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ कि उंगलियों से जल छिडकते हुये आसन शुद्ध करना चाहिए |

आसन की शुद्धि:- आसन पर जल छिडकते हुये मन्त्र बोले :-

ओउम पृथ्वित्या धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता |
त्वं च धराय माँ देवि पवित्रं कुरु च आसनम ||

शरीर की शुद्धि हेतु मंत्र :-
इसी प्रकार और बाये हाथ में जल लेकर शरीर के मस्तक आदि समस्त अंगों पर जल छिडकते हुये निम्न मंत्र बोले :-

ओउम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि व |
यःस्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचि ||

शिखा बंधन हेतु बालों के या शिखा के हाथ लगाकर गुरु मंत्र या गायत्री मंत्र बोले फिर बाये हाथ में गोपी चन्दन घिसकर शलाका से तिलक करे |

अब संकल्प करे क्योकि संकल्प करना अतिआवश्यक है और बिना संकल्प के पूजा का फल नहीं मिलता है, अत: संकल्प करने के पश्चात ही पूजा आरम्भ करनी चाहिए |

संकल्प करने की विधि जानने के लिए यहाँ क्लिक करे - संकल्प विधि 

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