निम्बार्क प्राकट्य एवं निम्बार्क सनातन परम्परा
इनके पिता अरुण ऋषि की, श्रीमद्भागवत में परीक्षित की भागवतकथा श्रवण के प्रसंग सहित अनेक स्थानों पर उपस्थिति को विशेष रूप से बतलाया गया है। हालांकि आधुनिक शोधकर्ता निंबार्क के काल को विक्रम की 5वीं सदी से 12वीं सदी के बीच सिद्ध करते हैं। संप्रदाय की मान्यतानुसार इन्हें भगवान के प्रमुख आयुध ‘सुदर्शन’ का अवतार माना जाता है।
SudarshnaChakravatar Shri NimbarkaCharya ji |
बचपन से ही यह बालक बड़ा चमत्कारी था। एक बार गोवर्धन स्थित इनके आश्रम में एक दिवाभोजी यति (केवल दिन में भोजन करने वाला संन्यासी) आया। स्वाभाविक रूप से शास्त्र-चर्चा हुई पर इसमें काफी समय व्यतीत हो गया और सूर्यास्त हो गया। यति बिना भोजन किए जाने लगा। तब बालक नियमानंद ने नीम के वृक्ष की ओर संकेत करते हुए कहा कि अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है, आप भोजन करके ही जाएं। लेकिन यति जैसे ही भोजन करके उठा तो देखा कि रात्रि के दो पहर बीत चुके थे। तभी से इस बालक का नाम ‘निंबार्क’, यानी निंब (नीम का पेड़) पर अर्क (सूर्य) के दर्शन कराने वाला, हो गया।
निंबार्काचार्य ने ब्रह्मसूत्र, उपनिषद और गीता पर अपनी टीका लिखकर अपना समग्र दर्शन प्रस्तुत किया। इनकी यह टीका वेदांत पारिजात सौरभ (दसश्लोकी) के नाम से प्रसिद्ध है। इनका मत ‘द्वैताद्वैत’ या ‘भेदाभेद’ के नाम से जाना जाता है। आचार्य निंबार्क के अनुसार जीव, जगत और ब्रह्म में वास्तविक रूप से भेदाभेद संबंध है। निंबार्क इन तीनों के अस्तित्व को उनके स्वभाव, गुण और अभिव्यक्ति के कारण भिन्न (प्रथक) मानते हैं तो तात्विक रूप से एक होने के कारण तीनों को अभिन्न मानते हैं। निंबार्क के अनुसार उपास्य राधाकृष्ण ही पूर्ण ब्रह्म हैं।
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपनी सुविख्यात पुस्तक ‘भारतीय दर्शन’ में निंबार्क और उनके वेदांत दर्शन की चर्चा करते हुए लिखा है कि निंबार्क की दृष्टि में भक्ति का तात्पर्य उपासना न होकर प्रेम अनुराग है। प्रभु सदा अपने अनुरक्त भक्त के हित साधन के लिए प्रस्तुत रहते हैं। भक्तियुक्त कर्म ही ब्रह्मज्ञान प्राप्ति का साधन है। सलेमाबाद (जिला अजमेर) के राधामाधव मंदिर, वृंदावन के निंबार्क-कोट, नीमगांव (गोवर्धन) सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में निंबार्क जयंती विशेष समारोह पूर्वक मनाई जाती है।
इसलिए कहा जा है कि निम्बार्क में प्रभु श्री राधामाधव के प्रति प्रेम व उपासना अति विलक्षण है, अर्थात वहाँ भक्ति को भक्ति ही नहीं अपितु उसे प्रेम व रस से मिला हुआ प्रसाद माना जाता है |
श्री कृष्ण गोविन्द... प्रभु नियमानंद.... |
राधे कृष्ण राधे श्याम.... राधा गोविन्द ||
(राधे-राधे )
(राधे-राधे )
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