Wednesday 15 August 2012

Nimbark Worship Methodology For Resolution


|| संकल्प करना ||


संकल्प विधि :- दाहिने हाथ में जल लेकर बोले:-  

ओउमतत्सदध्ये तस्य ब्राह्मो ह्नी द्वितीय परर्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त अंतर्गत देशे वैवस्त मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरने श्री विक्रमार्क राज्यदमुक संवत्सर.........अमुक शके......, ईश्वी सत्र ......,अमुक अयन उतरायण/ दक्षिण.....अमुक ऋतु.............
मासे ..... पक्षे ..... तिथि ......वार..... दिनांक........... अपना नाम.......
अपनी गोत्र ........मम कायिक वाचिक मानसिक सांसर्गिक दुविधा निवारण श्रीराधासर्वेश्वर मंत्र सन्ध्योपासनं करिष्ये | ऐसा कहकर जल छोड दे |

आचमन:- अब जल लेकर तीन बार आचमन करते हुये निम्न मन्त्र बोले -

1. ओउम केशवाय नमः |
2. ओउम नारायणाय नमः | 
3. ओउम माधवायनमः |

अब पांच बार प्राणायाम करे :- बाये श्वर से श्वास लें व दाहिने श्वर से निकले व वापस दाहिने श्वर से श्वास ले अंदर रोके बाये से निकले  इसको पांच बार करे | यह अनुलोम विलोम प्राणायाम अवश्य करें |

अघमर्षण:- दाहिने हाथ में जल लेकर बायें से ढककर उसको तीन बार मूल मन्त्र बोलकर ‘अस्त्राय फट्’बोले और जल को अपने बाएँ भाग में छोडदे

मार्जन :- बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अंगुलियों निम्न मंत्र बोलकर शरीर के अंगों पर छींटे देवें –

ओमं दामोदराय नम: शिरसि | ओउमं संकर्षणाय नम : मुखे |
ओउमं वासुदेवाय नम:, ओउमं प्रद्युम्नाय नम: घ्रणयो: |
ओउमं अनिरुद्धाय नम:, ओउमं पुरुषोत्तमाय नम: नेत्रोयो: |
ओउमं अधोक्षजाय नम:, ओउमं नृसिंहाय नम: श्रोत्रयो: |
ओउमं अच्युताय नम: , ओउमं जनार्दनाय नम: हृदये |
ओउमं हरये नम: , ओउमं विष्णवे नम: हस्तयो: |
ओउमं उपेन्द्राय नम: सर्वांगे इति | 

Nimbark Vaishnava Worship Methodology

|| निम्बार्क वैष्णव संध्या पद्धति ||


प्रिय भावुक भक्तजनु वेष्णव के ये मुख्य तीन कर्म है | प्राणीमात्र पर दया, भगवत्भक्ति और वैष्णव सेवा |
जैसे :-

वैष्णवानां त्रयं कर्म दया जीवेशु नारद |
श्रीगोविन्दे परा भक्ति:तदीयाना  समर्चनम्||

इसमे भगवत्सेवा के योग्य मानव तभी बनता है जब प्रात :ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच--स्नान से निवृत्त हो संध्या वन्दना आवश्यक नित्य कर्म कर ले | शास्त्रों में बताया है  “देवो भूत्वा देवं यजेत” अर्थात देव के समान बनकर  देवपूजा करनी चाहिये | ये तभी संभव होगा जब संध्या उपासना कर लेंगे |

बिना संध्या किये जप, तप, पूजा, पाठ, स्तुति, शुभ कर्म उसी प्रकार व्यर्थ है, जैसे पत्थर पर बीज बोने पर होता है | इसलिये संध्या करने के लिए आसन शुद्धि, शरीर शुद्धि, शिखा बंधन, तिलक, संकल्प, आचमन, अघमर्षण, मार्जन, भूतशुद्धि, करन्यास, हृदयादिन्यास, गायत्री आवाहन, श्रीगोपाल गायत्री जप आदि करके फिर गुरु प्रदत्त मंत्र द्वारा करन्यास, अंगन्यास, विनियोग करके मुकुंद मंत्र जप यथा शक्ति करे | इस प्रकार एक माला भी नित्य अनंत फल देती है |सभी के मंत्र निम्न प्रकार है